Friday, March 29, 2024
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बकरी पालन का व्यापार ।Goat farming business । Bakri Palan in hindi

बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसके सहायता से किसान  कम लागत मे अपनी अच्छी आमदनी  कर सकता है। बकरी के दूध कई बीमारी में लाभदायक सिद्ध होता है। भारत में जिस प्रकार से बकरियों की संख्या में बृद्धि हुई है, और बकरियों के दूध के उत्पादन में लगभग 3 प्रतिशत तक भारत में हिस्सेदारी है, और मांस उत्पादन में भी बकरियों से किया जा रहा है। और इसके खाल से बहुत सारे चमड़े का प्रयोग किया जा रहा है। और जो इसके बाल है उनके प्रयोग से बहुत सारे कम्बल व ऊनी वस्त्र के रुप में प्रयोग किया जा रहा है।  बकरी किसी भी तरह का चारा आसानी से खा लेती है। किसी भी तरीके की घास को खा लेती है। थोड़ा सा खाना खा करके तेजी से अपने उत्पाद में बदल देती है।

बकरी का आकार बहुत छोटा होने के कारण बहुत सारे लेबर व श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती. हमारे घर की जो महिलाएं  होती है उनका भी इस्तेमाल हम कर लेते है और जो दूसरे पशु होते है उनमे बीमारी लगने की संम्भावना बहुत अधिक होती है पर बकरी बहुत हार्डी होती है और इसमें आसानी से बीमारी लगती नही। इनको विशेष प्रकार की शेड बनाने की आवश्यकता नही पड़ती। आप लो कास्ट शेड़ बनाकर कम खर्चे में बकरी पालन करके अधिक-से अधिक कमाई कर सकते है।

बकरी पालन कम लागत में अच्छी आमदनी देने वाला व्यवसाय है। ये बंजर, दुर्गम पहाड़ी, रेगिस्तानी इलाकों में बकरी पालन बिशेष रुप से किया जा रहा है। इस व्यवसाय को छोटी जगह से कर सकते है।  बकरी पालन मुख्य रुप से दूध व मांस के लिए किया जा सकता है। बकरी पालन में न तो किसी खास प्रकार के अहार की जरुरत होती है, और न ही किसी खास किस्म के बड़े आवास और ना ही विशेष जलवायु की जरुरत होती है। 

बकरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी गरीब का गाय कहते हैं।

बकरियों की नस्ल 

हिंदुस्तान में बकरी की कुल 24 नस्ल है, जिनको विभिन्न राज्य विभिन्न क्षेत्रों में हमारे पूर्वज ने यहां के वातावरण व परिस्थितियां के अनुरूप उनको विकसित किया था। जो बकरी जिस क्षेत्र की हो वहां उसी नस्ल के बकरे को ध्यान देना चाहिए,  जैसे अगर कोई बकरी पूर्वी भारत की हैं तो पूर्वी भारत मैं ब्लैक बंगाल नस्ल पाई जाती वहां के किसान उसी नस्ल के बकरी पर ध्यान दो। बात करते हैं उत्तरी भारत या उत्तर प्रदेश में बरबरी नस्ल की बकरी अति उत्तम है

  1. ब्लैक बंगाल –  इस नस्ल कि बकरियाँ विशेष रुप से पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, असम, उत्तरी ओडिशा  में पायी जाती है।
  2. बीटल बकरी –  इस नस्ल की बकरियाँ मेहसाना, झखराना, मालावरी में है। 
  3. बरबरी बकरी-  बरबरी हमारे भारत में हर एक जगह हर एक प्रदेश में आराम से पाली जाती हैं बहुत हार्डी होती हैं और हर एक परिस्थिति में झेल जाती हैं। हर एक मौसम में उसके अनुसार अपने आप को ढाल लेती है। इसका वजन लगभग 30 किलो तक होता है यह 30 किलो का अंदर तक होता है
बरबरी की बिशेषता
  • इनका कलर सफेद होता है
  • ब्राउन कलर का स्पॉट होता है
  • इसके कान छोटे होते हैं और खड़े होते हैं
  1.  सिरोही – को कई नाम से जाना जाता है, यह मुख्य रूप से राजस्थान की हैं तोता परी भी कहते हैं क्योंकि यह बकरियां राजस्थान की हैं इसलिए हर तरह की गर्मी को सहने की और हर तरह के ठंडक सहने की क्षमता होती है और इनका प्रतिरोधक क्षमता भी बहुत अच्छा होता है। इन बकरियों का वजन भी बहुत अच्छा होता है लगभग 35 से 40 किलो तक की होती है। इसलिए सिरोही ज्यादातर पालते हैं मांस के लिए खाल के लिए और दूध के लिए।
  1. जमुनापारी बकरी- इस प्रकार की बकरी गंगा, यमुना या अन्य नदियों से घिरे स्थान पर पाई जाती है। यह अन्य नस्ल की बकरी की अपेक्षा सबसे ऊची और लम्बी होती है। और इसका औसत वजन लगभग 50 किलो तक होता है। 

बकरी पालन के लिए उचित स्थान-

बकरी पालन के लिए स्थान का चुनाव इतनी दूर भी नहीं करनी चाहिए, की जहाँ पर जंगली जानवरों की भय हो। और आसानी से आप पहुँच सके, थोड़ा ऊचाई पर हो। बकरी बालन के लिए पूर्व व पश्चिम दिशा सबसे अच्छा होता है। क्योंकि इस दिशा में सूर्य की प्रकाश भी काफी अच्छे से आती है। और हवाएँ ऐसी नहीं आती है कि जिससे नुकसान हो सके।  

50 से 100 उन्नत बकरी पालन करने के लिए लगभग एक से डेढ़ एकड़ की जमीन चाहिए जिसमें बकरियों के आवास भी बनेंगे, भूसा स्टोरी बनेगा, दाना स्टोर बनेगा और बकरियों के बाड़े भी बनेंगे ।

एक बकरी के आवास के लिए ढ़ेड से दो वर्ग मीटर जगह चाहिए। ताकि चारो तरफ घूम सके। इतना बंद आवास चाहिए और इसके दुगना खुला आवास चाहिए। शेड में उतनी ही संख्या में बकरी को पालना चाहिए जितना आसानी से आ जाएं। स्वच्छ पानी की भी व्यवस्था होनी चाहिए। 

बकरी के रोग निवारण और वैक्सीनेशन

पशुओं में कई प्रकार के बीमारी लगने की आशंका रहती है, जिसमें मुंहपका-खुरपका, ब्रूसेलोसिस रोग प्रमुख है। 

बकरियों में मुख्यप्रकार से मुंहपका-खुरपका, पेट के कीड़े के रोग होते है। ये रोग आमतौर पर बरसात के मौसम में होते है। जिससे इन रोग को बरसात के मौसम में बिशेष सावधानी से रखना होता है।

  • मुंहपका-खुरपका- ये रोग बिषाणु से होते है। ये रोग किसी भी समय गाय या भैस  व बकरी में किसी भी समय हो सकते हैं।  इसका अनुमान लगाया जाए कि इंडिया में इससे होने वाली इकोनॉमी नुकसान कितना होती है.स्टडी में पाया गया है कि लगभग 20 हजार करोड़ रुपए का । पशुओं में जब ये बीमारी होती है दो खुर वाली पशु में  ( जिसके अन्तर्गत गाय, भैस, भेड़, बकरी) होते है।, इसके अन्तर्गत मुख्यरुप से होता है।

 लक्षण-

  • इस बीमारी से तेज बुखार होता है, 
  • मुह से लार गिरेगी, 
  •  मुँह में बड़े बड़े छाले हो जाते है,जिसके कारण अच्छे से खाना नहीं खा पाता जिससे पशु कमजोर हो जाता है।
  •  जीभ के अन्दर बड़े-बड़े छालें हो जाते है जीभ पूरी तरह गलने की स्थिति में आ जाते है। 
  • इसके साथ ही खुर में भी लक्षण होते है। खुर अपने जगह से छुटना शुरु कर देते है और उसके अन्दर कीड़े पड़ जाते है।
  •  इसके वजह से पशु का दूध उत्पादन की क्षमता काफी प्रभावित होता है। दुध 10 लीटर से 1 लीटर तक आ जाता है।
  • इसके होने से पशु सूखने लग जाता है।
  • पशु के मुँह, मसुड़े के के ऊपर , ओठ के अन्दर और खुर के बीच में छोटे-छोटे दाने उभर आते है। ये दाना आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते है।  छाला फूटने पर वहां पर बड़ा जख्म हो जाता है, पशु जुगाली करन बन्द कर देते है। और खाना पीना छोड़ देते है। वे सुस्त हो जाते है।

रोकथाम- इसका रोकथाम के लिए सही समय पर  टिकाकरण करवाना बहुत जरुरी हो जाता है। बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से दूर रखें।  उनका खाना पानी भी अलग कर दे। पशु को बाँध कर रखें और घुमने फिरने न दे। पशुओं को सूखे स्थान पर बाँधकर  व कीचड़, गीली मिट्टी से दूर रखें। जहाँ बीमार पशु का लार गिरता है वहाँ कपड़े धोने का सोड़ा व चूने का छिड़काव कर देना चाहिए। यह रोग होने पर जल्द से जल्द  नजदीकी चिकित्सक को दिखाए. 

ब्रूसेलोसिस की बीमारी- 

  ब्रूसेलोसिस रोग गाय, भैस, भेड़, बकरी, सुअर में फैलने वाली संक्रामक बीमारी है। मुख्यरुप से इसके अन्दर गर्भपात होता है। इस बीमारी से पशुओं में 6-9 माह में गर्भपात  होता है। यह बहुत ही सक्रमक रोग है एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है। इसमें भी पशु को तेज बुखार होता है, यह एक जुनोटेक बीमारी है. अतः यह पशुओं से आदमीयों के अन्दर भी फैल सकती है। इसके लिए जो भी पशु के अन्दर गर्भपात होता है, बिलकुल ग्लप्स लगाकर बड़ी सावधानी से बच्चे को नमक व चूना डालकर करना होता है. 

ब्रूसेलोसिस की रोकथाम 

  • टिकाकरण करना चाहिए।
  • यह टिका सिर्फ मादा पशुओं में लगाने की जरुरत होती है।  बछड़ी या कट़ड़ी दोनो में लगाया जाता है।
  • 6-8 महीने के उम्र में ब्रूसेलोसिस का टिका जरुर लगवा ले। यह एक बार टिका लगाने के बाद जीवन भर काम करता है।

FMD- यह बरसात आने से पहले और एक दिसम्बर माह में इसका टिका लगवाना चाहिए। एक साल में दो बार टिका किया जाता है और  यह एक दम मुफ्त है। यह बहुत ही घातक व खतरनाक बीमारी है। 

बकरी पालन में होने वाले लाभ 

  • उन्नत बकरी पालन किया जाए तो प्रति बकरी 1 वर्ष में 6000 से लेकर 10000 तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।
  • बकरी से अच्छे मुनाफा के लिए बकरियों को स्वस्थ व सेहतमंद रखना अति आवश्यक है।
  • बकरी गरीबों की गाय होती है, इनका पालन छोटे व सीमांत किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए करते हैं। बकरी पालन में सबसे अच्छी बातें होती है की इसमें पशुपालक को कम खर्च करना पड़ता है और कम करके  इससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए सबसे जरूरी है प्रशिक्षण लेना।  किसान अपने क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर बकरी पालन शुरू कर सकता है।
  • 1 साल में बकरी दो बार बच्चा देती है एक से 2 बच्चे एक पशु के होता है। जो हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण है कि छोटे किसान को दूध भी मिलता है इनके खाल भी बिकता है इनका मांस भी बिक जाता है इनका एक एक चीज बिक जाता है। इनका रखरखाव बहुत आसान है इनको रखने के लिए ऐसी जगह होनी चाहिए जो ज्यादा से ज्यादा सुखी रहती हो गीली ना हो।
  • एक साल में थोड़ा कम फायदा आता है लेकिन जैसे ही दूसरे साल में वो लगभग डबल होने लगती है। 14 महिनों के अन्तर में दो बार बच्चे देती है। और एक बार जो बच्चे है वो तीन-तीन बच्चे तक देती है। दूसरे साल से फायदा लगभग ढाई गुना बढ़ जाता है।  

सरकार की तरफ से सहायता

सरकार के द्वारा पशुपालन के बढ़ावा देने के लिए कई तरह के लाभकारी योजनाएं चलाई जाती है,जिसका किसान फायदा उठा कर पशुपालन का व्यापार कर सकते है। और अपने व्यापार के लिए नाबार्ड से आर्थिक सहायता के रुप में ऋण भी ले सकते है।

बकरी पालन के लिए सावधानियाँ या ध्यान देने वाली बात

  • बकरियों में मुख्यप्रकार से मुंहपका-खुरपका, पेट के कीड़े के रोग होते है। ये रोग आमतौर पर बरसात के मौसम में होते है। जिससे इन रोग को बरसात के मौसम में बिशेष सावधानी से रखना होता है।
  • बकरियों को हिंसक पशुओं से खतरा रहता है इसलिए इनसे इनको बचा के रखना चाहिए।
  • नवजात बकरे  को अंतः परजीवी नाशक नियमित रूप से दें
  • मेमनों को पीपीआर का टीका लगवाएं 
  • दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए उनका दूध पूरा मुट्ठी बांधकर निकाले।

बकरी पालन करने वालों को कुछ बिंदुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए

  • उन्नत बकरी प्रबंधन
  • उन्नत प्रजनन प्रबंधन
  • उन्नत पोषण प्रबंधन
  • उन्नत स्वास्थ्य प्रबंधन
  • उन्नत स्मार्ट मार्केटिंग

अगर उपरोक्त सभी बिंदु को ध्यान में रखकर बकरी पालन किया जाए तो प्रति, बकरी 1 वर्ष में 6000 से लेकर 10000 तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।

उन्नत नस्ल प्रजनक बकरें का चुनाव

निम्न ध्यान देना चाहिए

  • जो हम प्रजनक बकरे को चुन रहें है, वह शुद्ध नस्ल का हो आर्थात उसके माँ बाप भी शुद्ध नस्ल के हो।
  • बकरे की बढ़ने की क्षमता तेजी से होनी चाहिए,
  • उसके माँ के निचे पर्याप्त दूध भी होना चाहिए।
  • इस प्रकार के बकरे का चुनाव 10 से 12 माह में चुनाव कर लेना चाहिए।
  • उसके बाद देखना चाहिए कि यह बकरियों को गर्भवति कर पाता है कि नहीं।
  • जो बड़े आकार के बकरी है उनको गर्भ के लिए बकरे का उम्र 2 साल तक होने तक ही प्रयोग में लाना चाहिए, जैसे (जमुनापारी, सुरोही,झकरा आदि) लेकिन बरबरी बकरी मध्यम आकार की है तो इसके लिए प्रजनक बकरे का उम्र डेढ़ वर्ष हो जाए तब इसको गर्भ धारण के लिए प्रयोग में लाने के लिए शुरु करना चाहिए।
  • एक बकरें से एक दिन में दो या तीन बकरियों को ही गर्भित कराएँ, अगर एक दिन में ज्यादा बकरियों को गर्भित कराऐगें तो उनके गर्भ धारण की सम्भावना कम रहेगी।
  • प्रजनन के समय जो बकरे से प्रमुख बिमारियाँ बकरियों में फैलती  है जिसके कारण बकरियों का गर्भपात (Abortion) होता है, वह है ब्रुसोलेसिस ।
  • ब्रुसोलेसिस  बीमारी से बचने के लिए अपने प्रजनक बकरे का प्रति वर्ष बकरे का खून लेकर उसका जाँच कराए। क्योंकि अगर कोई बकरा ब्रुसोलेसिस बीमारी से पिड़ीत पाया जाता है तो उसे प्रजनन में नहीं प्रयोग में लाना चाहिए।
  • एक बकरे से एक रेबड़ मे एक से ढ़ेड वर्ष ही प्रयोग में लाना चाहिए। क्योंकि इससे जो बच्चियाँ पैदा होती है वह पुनः जवान हो जाती है हमें इस बात का ध्यान में रखना होगा कि अन्तर प्रजनन बचाव के लिए उसकी जो माँ हो व बच्चियां हो वह इस बकरे से प्रजनन न हो। और यह भी ध्यान में रखना है कि उसके जो नर बच्चा पैदा होते है वह भी उस रेवड़ में न प्रयोग हो।
  •  प्रत्येक एक से डे़ढ़ वर्ष में अपना प्रजनक बकरा को बदल दे।

उन्नत बकरी पालन में शेड़ का निर्माण बिधि-

  • इसमे इस बात का ध्यान में रखना चाहिए कि जो नर व मादा है तीन माह के बाद अलग -अलग रखा जाए। 
  • जो 3-6 माह की या 6-12 माह की या उनसे जो ज्यादा माह की बकरियाँ है उनको फिर से अलग-अलग रखा जाता है।
  • जो बकरी गर्भ से है या जो दूध देने वाली है उनको भी फिर से अलग-अलग रखा जाता है।
  • जब बकरी 10 माह  और उसका वजन 18 किलो से अधिक की हो जाए तब उनको गर्भावित कराए.

बकरियों के लिए उन्नत भोजन-

  • 10-15 प्रतिशत से ज्यादा मक्का नहीं खिलाना चाहिए। उसके बाद पत्तियाँ भी खिलाया जाता है। 
  • सब्जियों के बचे ढंथल को भी खिलाया जा सकता है। 
  • अरहर की दाल
  • डेपियर घास का भी 
  • जन्म लेने से तीन माह तक उम्र के बच्चे बहुत तेजी से बढ़ते है। बरबरी नस्ल के बच्चे की 80-100 ग्राम वजन प्रति दिन बढ़ता है। छोटे बच्चो को 50-100 ग्राम दाना देते है।
  • जब 3-6 माह के बच्चे का उनको दाना बढ़ने लगता है।
  • और 6-9 माह के बकरी को दाना और बढ़ा इनको प्रतिदिन 300 ग्राम देते है। इस समय इनका दाना इनके बृद्धि के लिए दिया जाता है।
  • जब बकरी 10-11 माह कि और गर्भित से हो जाती है तो एडवांस प्रेगनेंसी स्टेज पर 200 से 250 ग्राम दाना और बढ़ा देते है।
  •  जब 12 माह के बकरी हो जाती है तो परिपक्व हो जाती है उस समय केवल मेंटिनेंस राशन दिया जाता है। 

बकरियों के छोटे बच्चो का पालन-

बकरियों के छोटे बच्चो का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि छोटे बच्चो कि देखभाल व सफाई अच्छे से न किया जाए, और समय पर पानी न पिलाया जाए तो वे कमजोर हो जाते है। तो उनमें बीमारी भी तरह तरह के हो जाते है। छोटे बच्चो को समय -समय पर पानी व चारा भी मिलता रहे। पेड़ से जो चारा जो मिलता वह उच्च गुणवत्ता के होते है। इसलिए जहाँ बकरी का बाड़ा हो वहाँ पर तरह तरह के पेड़ लगाए।

बकरी का प्रोसेसिंग 

बकरी का प्रोसेसिंग करने से 

बकरी के पनीर, 

बकरी के दूध के लाभ

  • बकरी के दूध पीने से दूध अच्छी तरह से हजम हो जाता है।
  • बकरी के दूध में फैट की साइज छोटा होता है
  • बकरी के दूध से रोगी के रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता की बृद्धि होती है।
  • इसमें वसा कण बहुत अधिक होता है।
  • शरीर के इम्युनिटी को बढ़ाता है।

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